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इंदौर6 मिनट पहले

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जीएसटी लागू होने के बाद इस कानून में समय समय पर कई बदलाव होते रहे हैं। इस कारण से बुक्स ऑफ़ एकाउंट्स रखने और बैलेंस शीट बनाते समय कई बातें ध्यान में रखना जरूरी है। टैक्स प्रैक्टिसनर्स एसोसिएशन (टीपीए) द्वारा आयकर भवन के टीपीए हॉल में शुक्रवार को आयोजित कार्यशाला में जीएसटी विशेषज्ञ सीए शैलेंद्र पोरवाल ने यह जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि जीएसटी में खाता-बही रखने एवं नियमित कंप्लायंस को लेकर कड़े प्रावधान हैं। एक पंजीयत व्यवसायी को अपने प्रमुख व्यवसाय स्थल के साथ-साथ सभी अतिरिक्त व्यवसाय स्थलों पर भी संबंधित खाते एवं रिकॉर्ड रखना जरूरी है । उसे कई रजिस्टर जैसे आउटवर्ड, इनवर्ड, एक्सपोर्ट, एडवांस, रिवर्स चार्ज रजिस्टर के साथ-साथ स्टॉक रजिस्टर रखना अनिवार्य है, जो ज्यादातर व्यवसायियों द्वारा नहीं रखे जा रहे हैं। आयकर अधिनियम में अगर खाते एवं रिकॉर्ड रखने से छूट दी हो (जैसे धारा 44-एडी में विकल्प लेने की दशा में) तो भी ऐसे व्यवसायी को जीएसटी में सारे रिकॉर्ड रखना एवं रिटर्न में इनकी जानकारी देना जरूरी है।

टर्नओवर की गणना भी जीएसटी में कठिन

पोरवाल ने कहा कि टर्नओवर की गणना भी जीएसटी में सबसे कठिन है। एक प्रोप्राइटर फर्म की दशा में उसे व्यवसाय के अलावा निजी आय में से भी कई मदों को टर्नओवर में शामिल करना होता है। यहां सप्लाई, बिल बनाना या पेमेंट प्राप्त करने में जो पहले हो, तब करदेयता आती है। एक से अधिक राज्यों में पंजीयन की दशा में माल या सेवाओं की आपसी सप्लाई पर भी कर देयता है। अगर वर्ष 2022-2023 के जीएसटीआर–3बी एवं जीएसटीआर-1 में दर्शाए गए टर्नओवर में खाता-बही से कोई अंतर है, तो उसको 30 नवंबर के पूर्व भरे जाने वाले रिटर्न में सुधार कर लेना चाहिए। स्थायी संपति की खरीदी एवं बिक्री पर कर संबंधी विशेष ध्यान देने की जरूरत है। रिलेटेड पार्टी के साथ में किए गए व्यवहारों पर भी जीएसटी में देयता आती है, जिसका ध्यान रखा जाना आवश्यक है।

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