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इंदौर16 मिनट पहले

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करीब तीन माह पहले रतलाम रेलवे ट्रैक पर ट्रेन से एक हाथ-पैर कटने से गंभीर रूप से घायल हुए 6 वर्षीय मासूम की हालत में अब अच्छा सुधार हुआ है। विडम्बना यह कि एक माह पहले एमवाय अस्पताल में आकर उसकी शिनाख्त कर गए उसके परिजन अब तक नहीं लौटे हैं।

उनसे चाइल्ड लाइन, जीआरपी व आरपीएफ पूछताछ कर चुकी है लेकिन वे विरोधीभासी बयान दे रहे हैं। इस बीच मासूम ने जहां कुछ दिन पहले पीडियाट्रिक यूनिट में जहां एक हाथ-पैर से क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था लेकिन अब और अच्छी रिकवरी की है।

उसे स्टाफ व पुलिस ने पहले ट्रायसिकल पर घुमाया और अब उसने अब खुद चलाना भी सीख लिया है। हादसे को लेकर बनी गफलत की स्थिति और उसके माता-पिता के अलग-अलग बयानों तथा नहीं लौटने की स्थितियों के मद्देनजर अब उसे चाइल्ड लाइन को सौंपने की तैयारी है जहां उसे एकाध हफ्ते में बाल संरक्षण आश्रम भेजा जाएगा।

पहले जानिए क्या है मामला

3 मार्च को रतलाम के पास यह बच्चाल (खुद का नाम आकाश बताता है) रेलवे ट्रैक पर खून में लथपथ मिला था। उसके एक पैर और एक हाथ कट कर धड़ से अलग हो गए थे। दूसरा हाथ और दूसरा पैर भी बुरी तरह कुचले हुए थे। दो सर्जरी के बाद जान बच गई थी।

उसकी टूटी-फूटी बातों से पता चला था कि वह आदिवासी वर्ग से है। तब से अस्पताल स्टाफ, जीआरपी और भर्ती मरीजों के अटैंडर वार्ड में उसे पाल-संभाल रहे हैं। इस बीच सोशल मीडिया पर उसकी खबरें खूब चली। करीब एक महीने पहले सांगली गांव (खरगोन) के ग्रामीणों ने उसके परिवार को सूचना दी।

मां रेशमा, दादी व रिश्तेदार एमवाय अस्पताल पहुंचे थे और उसकी शिनाख्त की थी। इस दौरान मासूम उन्हें देख रो पड़ा था। तब आकाश के पिता तैरसिंह बीमार होने के कारण इंदौर नहीं आए थे। मां तो तब कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी जबकि रिश्तेदारों ने बताया कि वह गोद में से गिर गया था। इसके बाद दंपती मजदूरी करने गुजरात चले गए थे।

अब खुद अपने हाथ से भरपेट भोजन करता है मासूम।

अब खुद अपने हाथ से भरपेट भोजन करता है मासूम।

पिता कहते हैं मुझे कुछ नहीं पता

इस बीच परिवार ने उसका आधार कार्ड, पहचान पत्र कुछ भी नहीं बताया तो उन्हें लाने के लिए कहा गया था लेकिन वे अभी तक नहीं लाए। इस मामले में चाइल्ड लाइन व आरपीएफ भी उसके माता-पिता से पूछताछ कर चुकी है लेकिन मां गोद से गिरने की बात कह रही है।

पिता का कहना है कि मुझे इस बारे में कुछ नहीं मालूम। खास बात यह कि माता-पिता तो ठीक उसके चाचा-चाची, दादा-दादी सहित कोई भी रिश्तेदार न उससे मिलने अस्पताल आ रहे हैं और न ही उसे पाने के लिए कुछ प्रयास कर रहे हैं, इसके चलते कहानी उलझी हुई है।

यूनिट में खुद ट्रायसिकल चलाता है

ट्रायसिकल चलाने में थक जाता है मासूम लेकिन फिर चलाने लगता है।

ट्रायसिकल चलाने में थक जाता है मासूम लेकिन फिर चलाने लगता है।

उधर, वह अभी अस्पताल स्टाफ और जीआरपी की देखरेख में है। वह अब अच्छी डाइट भी ले रहा है। पिछले दिनों उसे यूनिट में ही ट्रायसिकल पर बैठाया गया तो वह काफी उत्साहित हुआ। उसे अस्पताल स्टाफ व पुलिसकर्मी चेतन नरवले ने एक हाथ से टायर चलाना सिखाया तो वह जल्द ही सीख गया।

अब बार-बार उसकी ही जिद करता है तो उसे नियमित ट्रायसिकल दी जाती है। वह उसे अच्छी तरह से चलाने लगा है। वह क्रिकेटर विराट कोहली का फैन तो है ही उसे पढ़ाई में भी काफी रुचि है।

दस्तावेजी व परिवार पर संदेह के पेंच

एक बार मिलकर गए परिजन फिर नहीं लौटे।

एक बार मिलकर गए परिजन फिर नहीं लौटे।

इस बीच उसके अलग-अलग ऑपरेशन हुए और उसके घाव भर गए। उसका हाथ-पैर कटा था वहां अब स्किन लगाई जाना है और इसके बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। ऐसे में वह अब कहां जाएगा, यह सवालिया है। अस्पताल स्टाफ, पुलिस व चाइल्ड नहीं चाहती कि उसे परिवार को सौंपा जाए क्योंकि हादसे की सही कहानी अभी स्पष्ट नहीं है।

दूसरा यह कि दस्तावेजी व परिवार पर संदेह का भी पेंच है। चाइल्ड लाइन को-ऑ़र्डिनेटर शुभम ठाकुर ने बताया कि ऐसी स्थिति में बच्चे को बाल संरक्षण आश्रम या किसी संस्था को सौंपा जा सकता है। इस मामले में बाल कल्याण समिति ही उचित निर्णय लेगी।

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