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सुनील धर्माधिकारी.इंदौरकुछ ही क्षण पहले

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जिस तरह शहद और शकर की मिठास हमें दिखाई नहीं देती, उसे केवल चखकर ही अनुभव किया जा सकता है, ठीक उसी तरह ईश्वर हर जगह मौजूद है, उसे सिर्फ अंतर्मन की भक्ति से ही देखा जा सकता है। ऐसा कोई पदार्थ नहीं है, जिसमें ईश्वर की मौजूदगी न हो। चेतन और जड़ सभी प्रकार के पदार्थों में उसकी उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है। ईश्वर सगुण निराकार है, वह अपने कार्यों से अपनी उपस्थिति सदैव दर्शाते हैं। श्रीमद् भागवत कथा में ईश्वर के सगुण और निर्गुण दोनों रूपों के दर्शन होते हैं। वेदव्यास रचित श्रीमद् भागवत के पहले ही श्लोक के 100 अर्थ निकलते हैं।

वेदमूर्ति धनंजय शास्त्री वैद्य ने राजेंद्र नगर स्थित जवाहर सभागृह में मराठी भागवत कथा के दौरान मंगलवार को यह बात कही। श्री राम मंदिर राजेंद्र नगर के स्वर्ण जयंती उत्सव तथा अधिकमास के निमित्त आयोजित भागवत कथा का यह दूसरा दिन था। कथा सुनने के लिए शहर के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में मराठी भाषी श्रद्धालु आ रहे हैं।

कथा में मौजूद श्रोता।

कथा में मौजूद श्रोता।

शाम को सिर्फ हल्का आहार लेना चाहिए

धनंजय शास्त्री वैद्य ने कहा कि शास्त्र कहते हैं कि सुबह के पहले प्रहर में जलपान अर्थात पानी ज्यादा खाद्य पदार्थ कम, दूसरे प्रहर में हमें सभी प्रकार का आहार लेना चाहिए, दोपहर बाद सूर्यास्त के पूर्व एक फल और संध्याकाल सिर्फ हल्का आहार लेना चाहिए, इससे पाचन क्रिया दुरस्त रहती है। रात का बचा हुआ भोजन सुबह ग्रहण नहीं करना चाहिए। प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनि समस्त नियमों का पालन करते थे।

आक्रमणकारियों ने भेदभाव बढ़ावा

उन्होंने कहा कि पूर्व काल में जाति व्यवस्था थी लेकिन जातिभेद कतई नहीं था। भारत में विदेशी आक्रमणकारियों ने अपने स्वार्थ के लिए जात-पात पर आधारित भेदभाव को बढ़ावा दिया है। भागवत में छह महत्वपूर्ण प्रश्न शौनकजी ने सूतजी से पूछे हैं। इन छह महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर ही संपूर्ण भागवत और मनुष्य जीवन का सार है। भागवतजी में कहा गया है कि समस्त शास्त्रों का सार कृष्ण भक्ति और हरि भक्ति ही है। भगवान के असंख्य अवतार हुए हैं, जब भगवान का अवतार संपन्न होता है, तब उसका सार भागवत में आकर स्थिर हो जाता है।

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