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सौरभ पांडेय, शहडोलएक घंटा पहले

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शहडोल दौरे को ठेठ देहाती रंग देने के लिए राज्य सरकार हर संभव कोशिश कर रही है। एक ओर जहां सभा स्थल को देहाती अंदाज में तैयार किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर उनके भोज का स्वाद भी प्राचीन भारत से जोड़े रखने की तैयारी है। भोजन पकाने से लेकर परोसने तक में सिर्फ उन्हीं वस्तुओं का उपयोग किया जा रहा है, जो प्राचीन भारतीय सभ्यता का कभी मुख्य हिस्सा हुआ करती थी।

दरअसल, 27 जून को देश के प्रधानमंत्री शहडोल जिले के पकरिया गांव आएंगे। इस दौरान वे आम्रकुंज के नीचे पीढ़ा पर बैठकर जनजातीय समुदाय के साथ भोजन करेंगे। यहां कांसे के बर्तन जैसे- थाली, कटोरी, चम्मच, ग्लास और महुआ के पत्तल में भोजन परोसने की तैयारी है।

चंदिया की मशहूर सुराही में रखा पानी पीएम मोदी को पीने के लिए दिया जाएगा। प्रशासन ने शहडोल कमिश्नर राजीव शर्मा के नेतृत्व में इन सभी तैयारियों को लगभग पूरा कर लिया है। अब सिर्फ PMO के निर्देशों का इंतजार किया जा रहा है।

मिट्टी के बर्तन में ही पकाएंगे भोजन

कमिश्नर राजीव शर्मा ने बताया कि प्रधानमंत्री के लिए जो भोजन तैयार किया जा रहा है उसमें मिट्टी के बर्तनों को विशेष महत्व दिया गया है। देश भर में मशहूर चंदिया की मिट्टी से बने बर्तनों में कोदो भात बनाया जाएगा, उसी में कुटकी खीर तैयार होगी। इसके अलावा अन्य जगहों पर भी मिट्टी के बर्तनों के उपयोग करने की तैयारी है।

देश भर में मशहूर चंदिया की सुराही में रखा पानी पीएम मोदी को पिलाया जाएगा।

देश भर में मशहूर चंदिया की सुराही में रखा पानी पीएम मोदी को पिलाया जाएगा।

चंदिया की सुराही में रखेंगे पानी

कमिश्नर शर्मा ने बताया कि भोज के दौरान PM मोदी के लिए जो पेयजल की व्यवस्था की गई है। उसमें भी चंदिया की मिट्टी से बने बर्तनों का उपयोग होगा। मिट्टी के ही जग और ग्लास में उन्हें पेय पदार्थ दिया जाएगा। इसकी तैयारी भी पूरी कर ली गई है।

चदिया वाले मिट्टी के बर्तन देश भर में मशहूर

उमरिया जिले की चंदिया में प्रजापति समुदाय मिट्टी के बर्तनों का बड़ा कारोबार करता है। यह समुदाय कई पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तन तैयार कर रहा हैं। चंदिया के दादू लाल प्रजापति बताते हैं कि उनकी चंदिया के बर्तनों की मांग देश भर के कई राज्यों में है। जिनमें मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र प्रमुख हैं।

कंडे और लकड़ी से पकाते हैं बर्तन

मिट्टी के बर्तन की कारोबार से जुड़ी चंदिया की रामबाई प्रजापति बताती हैं कि हमारे यहां की मिट्टी में कंकड़ नहीं है। यह एक दम चिकनी है। जब हम मिट्टी खोदते हैं, तो उसमें भी ठंडक होती है। जब हम मिट्टी को आकार देकर उसे पकाते हैं, तो पकाने में सिर्फ और सिर्फ गोबर का कंडा और लकड़ी का ही उपयोग करते हैं। इस कारण भी इसमें रखा पानी लंबे समय तक शीतल रहता है।

हर साल बनाते हैं 10 लाख मटके-सुराही

चंदिया में लगभग 300 से ज्यादा प्रजापति परिवार कई पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं। दादू लाल बताते हैं कि हम लोग हर साल 10 लाख से ज्यादा मटके और सुराही देश भर में बेचते हैं। चंदिया के मिट्टी के बर्तनों की मांग देश भर में बढ़ रही है।

कांसे से बने बर्तन में प्रधानमंत्री को खाना परोसा जाएगा। इसके लिए प्रशासन ने पूरी व्यवस्था कर ली है।

कांसे से बने बर्तन में प्रधानमंत्री को खाना परोसा जाएगा। इसके लिए प्रशासन ने पूरी व्यवस्था कर ली है।

कांसे के बर्तन का ही चयन क्यों

पकरिया गांव में पीएम मोदी को भोज के दौरान कांसा के ही बर्तन में क्यों परोसा जा रहा है? जब इसके पीछे वजह तलाशी, तो पता चलता है कि कांसे के बर्तनों का उल्लेख प्राचीन काल से ही मिलता है। ऐसे बर्तन प्राचीन सभ्यताओं से जुड़े स्थलों जैसे- ईरान, सुमेर, मिस्र और हड़प्पा, मोहन जोदड़ो, लोथल समेत भारत के अन्य जगहों पर मिले हैं।

उस समय ये बर्तन प्राय ढालकर या चद्दर को पीटकर बनाए जाते थे। धीरे-धीरे इन पर उभारदार काम भी होने लगा। भारतीय रसोई में तो इनके पात्रों का बहुत अधिक महत्त्व रहा है। किसी जमाने में भारतीय रसोई में कांसे, तांबे, पीतल और मिट्टी के बर्तन ही पाए जाते थे। आज भी कांस्य आदि के बर्तनों का उपयोग अच्छा माना जाता है। कांसे के बर्तन जीवाणुओं और विषाणुओं को मारने की क्षमता रखते हैं।

कांसे के बर्तनों में भोजन करना आरोग्यप्रद, असंक्रमण, रक्त तथा त्वचा रोगों से बचाव करने वाला बताया गया है। कब्ज और अम्लपित्त की स्थिति में इनमें खाना फायदेमंद होता है। इन पात्रों में खाद्य पदार्थों का सेवन करना रुचि, बुद्धि, मेधा वर्धक और सौभाग्य प्रदाता कहा गया है तथा यकृत, प्लीहा के रोगों में फायदेमंद है।

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