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खंडवा3 मिनट पहले
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केवलराम चौक पर मछुआ कांग्रेस ने किया धरना प्रदर्शन।
मध्यप्रदेश में मांझी-मछुआ समाज के साथ शासन ने वादाखिलाफी कर आरक्षण खत्म कर दिया और जाति-धंधे में गैर लोगों की एंट्री करा दी है। इन पर अंकुश लगाने संबंधी मांगों को लेकर बुधवार को शहर के केवलराम पेट्रोल पंप पर धरना प्रदर्शन किया गया। सुबह 11 बजे से 1 बजे तक धरना प्रदर्शन चला। बाद में नायब तहसीलदार गजानंद चौहान को महामहिम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के नाम ज्ञापन दिया।
इस दौरान कांग्रेस नेताओं ने कहा, मप्र में निवास करने वाले माझी मछुआ समाज जिन्हें कहार, भोई, डीमर, केवट, नाविक, मल्लाह, निषाद, सिंगराहे, सिंघरोड़े तथा उपनाम रायकवार, बाथम, कश्यप, बर्मन है। इनका पैतृक रूप से जातिगत व्यवसाय मछली पालन, मत्स्याखेट, नाव चालन करना एवं नदी तालाबों से निकली जमीनों पर खरबुजा, तरबुज लगाना प्रमुख काम है।
यह समाज आर्थिक और शैक्षणिक रूप से कमजोर है, यह समाज सदियों से भारत भूमि का मूल निवासी है। यह लोग आरंभ से ही नदी, पहाड़ो, जलाशयों के करीब रहते आये है और इनके रहन-सहन और खान-पान में आदिम युग की झलक देखी जा सकती है। इन लोगों को देश आजाद होने के बाद से ही संविधान में माझी जाति के नाम पर अनुसूचित जनजाति का आरक्षण भी दिया गया है। जिसमें किंतु परंतु लगाकर यह आरक्षण सन् 1949-50 से लगातार मिलता रहा है। लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार ने अचानक 1 जनवरी 2018 से यह आरक्षण खत्म कर दिया है।
राष्ट्रपति, राज्यपाल के नाम नायब तहसीलदार को दिया ज्ञापन।
गैर वंशानुगत जातियों को हटाने सहित दर्जनों मांगे
माझी जाति को लेकर जारी आदेश 1 जनवरी 2018 को संशोधित किया जाए। पिछड़ा वर्ग सूची क्रमांक 12 पर दर्ज सभी जाति तथा उपनामों को हटाकर अनुसूचित जनजाति की सूची क्रमांक 29 पर दर्ज माझी के साथ जोड़ा जाए। माझी जाति प्रमाण-पत्र धारी लोगों के शिकायतों के आधार पर छानबीन समिति में लंबित सभी प्रकरणों को समाप्त किए जाए। मछली पालन नीति 2008-09 में शामिल कर दी गई गैर वंशानुगत मछुआ जातियों को यहां से हटाया जाए। मप्र शासन द्वारा गत वर्ष प्रदेश में लागू किए गए।
पेसा एक्ट में प्रदेश के 89 आदिवासी विकासखंडों में जितने भी तालाब जलाशय है, उन सभी में मछली पालन का अधिकार आदिवासी भाईयों को दे दिया गया है। इस पेसा एक्ट के बाद प्रदेश में आदिवासी विकासखंडों के तालाबों से अब वंशानुगत मछुआरे बेदखल हो गए है। अतः शासन द्वारा लागू ऐसा एक्ट में संशोधन कर आदिवासी विकासखंडों के तालाबों, जलाशयों में मछली पालन का काम वंशानुगत मछुआरों को ही वापस दिया जाना चाहिए।
नदी, तालाब, जलाशय से खुलने वाली जमीनों पर तरबुज, खरबुज, ककड़ी व साग-सब्जी आदि लगाने के लिए इन जमीनों के 15 वर्षीय पट्टे दिए जाए। ज्ञात रहे कि सन् 1988 से तत्कालीन म.प्र. सरकार ने 15 वर्षीय अवधि के ऐसे पट्टे प्रदेश में इस समाज के हजारों लोगों को दिए भी थे, जो शासन के राजस्व रिकार्ड में अनेकों जिलों में दर्ज भी है। नदियों से निकलने वाली रेत के पचास प्रतिशत पर माछी मछुआ समाज का अधिकार होना चाहिए। प्रदेश के माझी मछुआ समाज के आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक स्तर को ऊपर लाने के लिए दर्शित इन बिन्दुओं को लागू कराया जाना न्यायसंगत होगा।
इधर, पहली बार कांग्रेस में दिखी एकजुटता
धरना प्रदर्शन के दौरान पहली बार कांग्रेस में एकजुटता दिखाई दी। मछुआ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सदाशिव भवरिया, शहर कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. मुनीश मिश्रा, मछुआ कांग्रेस जिला अध्यक्ष अनिल फुलमाली, मछुआ कांग्रेस शहर अध्यक्ष अश्विनी चौहान, वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजय ओझा, अवधेश सिसोदिया, डॉ. चैनसिंह वर्मा, मुल्लु राठौर, मोहन ढाकसे, मनोज भरतकर, सुनील आर्य, कुंदन मालवीय, रामपालसिंह सोलंकी, हुकुम मेलुंदे, रिंकु सोनकर, हुकुम वर्मा, रईस अब्बासी, मनोज मंडलोई, विकास व्यास, अर्ष पाठक, आलोकसिंह रावत, राजु सुनगत, राजकुमार कैथवास, लव जोशी, रणधीर कैथवास आदि मौजूद थे।
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