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छिंदवाड़ा5 मिनट पहले

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छिंदवाड़ा के पटेल कॉलोनी के रहने वाले हर्षित साहू जिले के युवा किसानों के लिए रोल मॉडल बनकर उभरे हैं। डेढ़ लाख रुपए की लागत से मधुमक्खी पालन शुरू करने वाले हर्षित अब शहद की बिक्री कर प्रतिवर्ष 6 लाख रुपए की आमदनी कर रहे हैं।

हर्षित ने बताया कि यह एक तरह लाइव स्टॉक का बिजनेस होता है। लाइव स्टॉक के बिजनेस में जितना ज्यादा फायदा होता है, उतने ही नुकसान की आशंका रहती है। मधुमक्खी को बच्चों की तरह पालना पड़ता है। उनके बुरे दौर में देखभाल करनी पड़ती है। ऐसे समय में जब मधुमक्खियां अपने घर से बाहर नहीं निकल पातीं, तब उन्हें उनके घर के अंदर ही परागण देना पड़ता है। गर्मी और अधिक बारिश के दिनों में मधुमक्खियों को कीटनाशक से भी बचाना चुनौतीपूर्ण होता है। उन्हें यह आइडिया कैसे आया और कैसे उसे अमल में लाएं, हर्षित की जुबानी जानते हैं उनकी सफलता की कहानी…

मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हूं। MSc के बाद मैंने स्वरोजगार करने की सोची। मैं चाहता था कि फूलों की खेती करूं। मध्यप्रदेश के कई जिलों के किसान फूलों की खेती कर अच्छी कमाई कर रहे हैं। यही सोचकर मैं भी इस ओर आकर्षित हुआ। इसके लिए मुझे प्रशिक्षण की जरूरत महसूस हुई। फ्लोरिकल्चर इंस्टीट्यूट पूना में फूलों की खेती करने के लिए कोर्स किया। कोर्स पूरा करने के बाद जब बारी आई स्वरोजगार करने की तो पूंजी का संकट खड़ा हो गया।

दरअसल, फूलों की खेती के लिए लाखों रुपए की पूंजी की जरूरत थी, जो उस समय मेरे पास नहीं थी। ऐसे में प्लान बी की तलाश शुरू की और मधुमक्खी पालन करने की योजना बनाई। शुरुआत करने से पहले मधुमक्खी पालन करने वाले कुछ किसानों से मिला। उनसे मधुमक्खी पालन के तरीके को समझा। लागत और रख-रखाव के बजट के साथ इसकी चुनौतियों का भी अध्ययन किया।

जहां तिलहन की फसलें होती हैं वहां के लिए फायदे का सौदा

यह उन किसानों के लिए अधिक लाभप्रद है जो खुद तिलहनी फसलों या फिर फूलों की खेती करते हैं। ऐसे किसान अपनी फसल के साथ मधुमक्खी पालन आसानी से कर सकते हैं। मधुमक्खी पालन के लिए ऐसे स्थान की जरूरत होती है जहां परागण की उचित व्यवस्था हो। वैसे तो मधुमक्खियां एक से डेढ़ किलोमीटर के क्षेत्र से फूलों से मकरंद (नेक्टर) जुटा लेती हैं। अगर तिलहनी फसल में मधुमक्खी पालन किया जाए तो दोनों की क्वालिटी अच्छी होती है।

छिंदवाड़ा में सरसों, जगनी के बढ़ते रकबा मधुमक्खी पालन के लिए वरदान साबित होगी, क्योंकि इन फसलों के फूलों से मधुमक्खी को भरपूर मकरंद प्राप्त होता है और इससे अच्छा शहद का निर्माण होता है। छिंदवाड़ा जिले के कई इलाके में संतरे की खेती की जाती है। ऐसी जगह पर मधुमक्खी पालन करने से फल की क्वालिटी भी अच्छी होती है।

ऐसे कर सकते हैं मधुमक्खी पालन की शुरुआत

हर्षित का कहना है कि मधुमक्खी का एक बॉक्स 5 से 6 हजार रुपए में आता है। इसमें 7 से 8 फ्रेम में मक्खियां होती हैं। इसमें रानी मधुमक्खी, नर मधुमक्खी और मादा मधुमक्खियां शामिल हैं। यह बिजनेस प्रकृति पर आधारित है। अगर हम मधुमक्खी के बॉक्स को ऐसी जगह लगाएं, जहां पहले से ही फूल लगे हों तो मधुमक्खियां 2 से 3 दिन में शहद बनाना शुरू कर देती हैं। 3 से 4 दिन का समय शहद पकने में लगता है। एक सप्ताह में हार्वेस्टिंग कर 4 से 5 किलो शहद निकाल सकते हैं।

हर महीने एक बॉक्स से 20 किलो शहद का उत्पादन

प्रतिमाह में एक बॉक्स से औसतन 20 किलो शहद निकल सकता है। यह बॉक्स टून और केले की लकड़ी का बना होता है। यह अन्य लकड़ियों की अपेक्षाकृत हल्की और मजबूत होती है। हल्की होने की वजह से बॉक्स का आसानी से परिवहन किया जा सकता है। इस लकड़ी पर हवा,बारिश और धूप का भी प्रभाव नहीं पड़ता है। इस बॉक्स में एक छेद होता है, जिससे मधुमक्खियां बाहर आवाजाही कर सकती हैं। 10 पेटी से मधुमक्खी पालन की शुरुआत करने पर 60 से 70 हजार रुपए तक का खर्च आता है। मधुमक्खियों की संख्या भी हर साल बढ़ती जाती है, जितनी ज्यादा मधुमक्खियां बढ़ेंगी, उतना ज्यादा ही शहद उत्पादन भी होगा। इसी अनुपात में मुनाफा भी बढ़ता जाएगा।

भारतीय बाजार में 20 से ज्यादा प्रकार के शहद मौजूद

हर्षित बताते हैं कि भारतीय बाजार में 20 से अधिक प्रकार के शहद मिल जाते हैं। कई बड़ी कंपनियां पूरे 12 महीने बाजार में एक ही प्रकार का शहद उपलब्ध कराती है। जामुन, लीची, बेर, यूकेलिपटस, नीम , करंजी, सरसों, सूरजमुखी सहित अन्य प्रकार के शहद सिर्फ मधुमक्खी पालक के पास उपलब्ध होते हैं। फूलों के खिलने का समय कुदरत ने अलग-अलग बनाया है। अगर हम मधुमक्खी के बॉक्स फूलों के आसपास रखते हैं तो मधुमक्खियां फूलों के नेक्टर कलेक्ट कर बॉक्स में रखेंगी। इस प्रकार से बने शहद की क्वालिटी और बेहतर होगी।

हर बॉक्स में एक रानी दी जाती है

प्रत्येक बॉक्स में एक रानी और बाकी 98 प्रतिशत कर्मचारी मधुमक्खियां होती हैं। बहुत सारी मधुमक्खियां जरूरी होती हैं, क्योंकि कोई एक मधुमक्खी टीम के अन्य सदस्यों के बिना शहद का निर्माण नहीं कर सकती है। मधुमक्खियों के छत्ते में एक ही रानी मक्खी होती है। सब केवल उसी के अनुशासन का पालन करती हैं। मधुमक्खियां अपने उत्पादों (शहद, रॉयल जेली, प्रोपोलिस) काे संग्रहित करती हैं।

जब तेज सर्दी या गर्मी या भारी बारिश का समय आता है तब मधुमक्खियां बॉक्स से बाहर नहीं जा पाती है। ऐसे समय के लिए पहले ही अपना भोजन संग्रहित कर रख लेती हैं। हर्षित ने बताया कि मधुमक्खी पालन करने वाले लोग वास्तव में शहद लेते समय मधुमक्खियों के आपातकालीन भंडार के हिस्से में चोरी करते हैं। उचित मात्रा में शहद एकत्रित करने पर, मधुमक्खियां शहद की मात्रा दोबारा तैयार कर लेती हैं। इस प्रकार वे बिना किसी समस्या के अपना जीवन-चक्र जारी रख सकती हैं।

जब परागण के लिए बाहर नहीं जाती तो देनी पड़ती है चाशनी

ऐसे समय में जब मधुमक्खियों के लिए बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, तब चीनी की चाशनी मधुमक्खियों को भोजन के लिए देना पड़ता है। पतला चीनी का घोल इनके पोषण के लिए सबसे अच्छा होता है। चाशनी बनाते समय पानी उबालने की जरुरत नहीं होती है, आप इसे 50-60 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर गर्म कर सकते हैं। गाढ़ी चीनी की चाशनी में दो भाग चीनी और एक भाग पानी रखना चाहिए। आमतौर पर बसंत और गर्मी के दौरान पतली चीनी की चाशनी इन्हें दी जाती है।

मधुमक्खी पालन में इन उपकरणों की जरूरत

मधुमक्खी पालन के पहले वर्ष में उपकरणों पर अधिक खर्च करने की जरूरत नहीं होती है। मधुमक्खी के छत्तों के अलावा उनके डंकों से बचने के लिए जरूरी कपड़े, विशेष मास्क और दस्ताने की जरूरत पड़ती है। साथ ही एक साधारण खुरपी, धुआं करने वाले यंत्र की जरूरत होती है। दरअसल, इससे मधुमक्खियों को शांत करने में मदद मिलती है। एक ब्रश, हथौड़ी, कील, पेंचकस, स्क्रू, चाकू, प्लास, तार, सेल क्लिप, सेल हैंडल की आवश्यकता होती है। इनके बॉक्स को हमेशा छायादार स्थान पर रखना चाहिए।

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