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सौरभ पांडेय . शहडोल8 मिनट पहले

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जनजातीय बाहुल्य इलाके में पहला कदम रखते ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जनजातीय समुदाय की पारंपरिक वाद्य यंत्रों की गूंज सुनाई देगी। जनजातीय समुदाय पर फोकस PM मोदी के इस कार्यक्रम को लेकर साफ किया गया है कि स्वागत से लेकर मंच तक, सभा से लेकर संवाद तक सब कुछ जनजातीय समुदाय की परंपरा उनकी सभ्यता से जुड़ी तैयारी होनी चाहिए।

इसी थीम को मद्देनजर रखते हुए प्रदेश सरकार भी PM के इस कार्यक्रम को जनजातीय रंग देने में जुटी हुई है। लालपुर मैदान पर जैसे ही PM मोदी का काफिला जमीन पर उतरेगा, वैसे ही पारंपरिक बाजा और नृत्य उनके स्वागत में प्रस्तुत किए जाएंगे। इसके लिए अनुपपुर जिले के बीजापुरी नंबर एक गांव की प्रसिद्ध टोली को आमंत्रित किया गया है। यहां का गुदुम दल और शैला, करमा नृत्य करने वाली जनजातीय टोली राष्ट्रपति, PM, राज्यपाल, कई प्रदेशों के CM के कार्यक्रम में प्रस्तुति दे चुकी है।

अगुवानी नृत्य से गुदुम दल करेगा स्वागत

PM नरेंद्र मोदी का स्वागत जनजातीय समाज की प्रसिद्ध अगुवानी नृत्य से किया जाएगा। इसकी जिम्मेदारी पारंपरिक गोंड जनजातीय गुदुम बाजा नृतक दल बीजापूरी नंबर एक गांव को सौंपी गई है। दल के प्रमुख शिव प्रसाद धुर्वे बताते हैं कि यह नृत्य औसत 15 मिनट का होता है, जिसे समय के अनुसार घटाया बढ़ाया जाता है।

इस दौरान हम डगर चली, गुरगुसा, भजन चढ़नी, लावनी चढ़नी, गुमक करते हुए पिरामिड बनाते हैं। इसके बाद झूमर करमा, लहमी करमा के बाद नमस्कार करते हुए कार्यक्रम समाप्त कर देते हैं। इस दल में 15 कलाकार होते हैं। सभी के साथ में वाद्य यंत्र होंगे। 11 कलाकारों के हाथ में गुदुम बाजा और 4 कलाकारों के हाथ में डफला, शहनाई, टिमकी और मजीरा होगा।

सैला नृत्य भी देखेंगे PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कार्यक्रम के दौरान जनजातीय समुदाय का मशहूर सैला नृत्य भी देखेंगे। इसकी प्रस्तुति भी अनुपपुर जिले के बीजापुरी गांव का नृतक दल देगा। दल के प्रमुख चेतराम मसराम बताते हैं कि हमारे दल 20 कलाकार होंगे। इनमें 7 महिला, 7 पुरुष और 6 वादक कलाकार होंगे। जिसमें मादर, टिमकी, शहनाई, गुदुम, मंजीरा, ठिसकी जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्र शामिल होंगे। इस दल को भी प्रस्तुति देने के लिए कम से कम 5 मिनट का समय चाहिए होता है। यह दल भी पहले राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत कई राज्यों के समारोहों में अपनी प्रस्तुति दे चुका है।

प्रेम व भाई-चारे का प्रतीक है सैला नृत्य

सैला (शैला) मूलरूप से जनजातीय नृत्य है। यह आपसी प्रेम एवं भाई-चारे का प्रतीक माना जाता है। ‘सैला’ का अर्थ ‘शैल’ या ‘डण्डा’ होता है। शैल शिखरों पर रहने वाले आदिवासियों के कारण इसका नाम शैला (सैला) पड़ गया। यह नृत्य दशहरे में शुरू होकर पूरे शरद ऋतु तक चलता रहता है। इस नृत्य का आयोजन अपने आदिदेव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। कुछ स्थानों पर सैला नृत्य को डण्डा नाच भी कहा जाता है। इस नृत्य में नाचने वाले आदिवासी पारंपरिक वेशभूषा में हाथों में डण्डा लेकर और पैरों में घुंघरू बांधकर गोल घेरा बनाकर नाचते हैं।

इस दौरान दोहे भी पढ़े जाते हैं। इस नृत्य का प्राचीन नाम सैला-रीना है। सैला में आधा दर्जन से अधिक किस्में शामिल हैं। उनमें से कुछ को बैठकी सैला, अर्तरी सैला, थाड़ी सैला, चमका कुंडा सैला, चक्रमार सैला (छिपकली का नृत्य) और शिकारी सैल के नाम से जाना जाता है।

गुदुम की थाप पर थिरकने लगते हैं कदम

गोंड जनजाति समाज द्वारा गुदुम नृत्य पर महारत हासिल की गई है। आदि काल से इनके पूर्वज गुदुम की थाप पर थिरकते आ रहे हैं। यह नृत्य गुदुम बाजा, टिमकी, ढफ, मंजीरा और शहनाई जैसे वाद्य यंत्रों के साथ किया जाता है। इसमें हस्त-पद संचालन के माध्यम से विभिन्न नृत्य मुद्राएं और पिरामिड बनाए जाते हैं। इसमें पुरुष और महिलाएं आमने सामने संगीत और गीत के माध्यम से एक दूसरे के साथ नृत्य करते हैं। इस गुदुम नृत्य की थाप पर कई बार सीएम शिवराज समेत कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री थिरक चुके हैं।

देश में पहला पुरस्कार जीत चुका है दल

शहडोल संभाग के अनुपपुर जिले का एक छोटा सा गांव बीजापुरी नंबर एक। यहां कई दशकों से इस पारंपरिक विरासत को जनजातीय समुदाय द्वारा सहेज कर रखा गया है। विशाखापट्टनम में जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से ट्राइबल कल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग मिशन के तहत आंध्रप्रदेश सरकार द्वारा आयोजित जनजाति नृत्य महोत्सव 2022 में देश के 14 राज्यों के जनजातीय नृत्य दलों ने प्रतिभागिता में भाग लिया। इससे पहले भोपाल में 26 जनवरी को लाल परेड में प्रथम स्थान हासिल किया था।

दिल्ली के लाल किला परेड मैदान में बीजापुरी के कलाकारों ने वर्ष 2012 में गणतंत्र दिवस समारोह में मध्यप्रदेश नृत्य दल टीम का हिस्सा बनकर प्रथम स्थान प्राप्त कर गौरव हासिल किया था। इस नृत्य दल में लक्ष्मीकान्त मार्को, शिवप्रसाद, उमेश मसराम,वीर बहादुर धुर्वे, लामू लाल धुर्वे, श्रीचंद मार्को, ईश्वर मरावी, राजकुमार मसराम, चरण लाल धुर्वे, मीरा मार्को, धनेश्वर, प्रहलाद, फगुआ, भीम, मुनि लाल, कोदु लाल, अनिल एवं अन्य साथी शामिल हैं।

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